
मंडला के प्रशासन का कहना है कि जो मकान तोड़े गए हैं वो उन 11 लोगों के मकान हैं जिनको गो हत्या और गो तस्करी के मामले में अभियुक्त बनाया गया है
सलमान रावी, बीबीसी संवाददाता, मंडला, मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश के मंडला ज़िला मुख्यालय से भैंसवाही की दूरी लगभग 45 किलोमीटर है. इसी जगह ईदगाह टोला भी है जहां 30 मकान हुआ करते थे. अब ये एक खंडहर में तब्दील हो गया है. जगह जगह मलबे का ढेर, टूटी दीवारें और इस मलबे में अपना सामान तलाश करते बच्चे और महिलाएं. बच्चे अपने खिलौने ढूंढ रहे हैं और महिलाएं वो क़ीमती सामान खोज रही हैं, जो मलबे के नीचे दबा पड़ा है.
रोशनी बी की आँखों में आंसू हैं. वो बोलती हैं, ”किसी और के किये गए गुनाह की सज़ा किसी और को दी जा रही है. हमारे घर से कुछ नहीं मिला है. हमारा घर अचानक तोड़ दिया.”
वे कहती हैं, “कम से कम हमें आगाह तो कर देते तो हम अपने खाने-पीने का सामान तो निकाल लेते. अब चार दिन हो गए हैं एक दाना नसीब नहीं हुआ है.”
“हमारे बच्चे भूखे हैं. पति कहाँ चले गए हैं कुछ पता नहीं. अब हम क्या करें? कहाँ जाएँ?”
उनके पति भी उन दस लोगों में से हैं जिनको पुलिस ‘फ़रार’ घोषित कर चुकी है और उन पर पांच हज़ार रुपये के इनाम की घोषणा भी कर दी गयी है. टोले के मुहाने पर ही 70 साल के अब्दुल रफीक़ अपनी झोपड़ी में बैठे हैं. वो बीमार हैं और उन्हें पेशाब की थैली लगाई गई है. इस टोले में सिर्फ़ वो ही एकमात्र पुरुष मौजूद हैं.
इस टोले में 15 और 16 जून को क्या हुआ था? इस सवाल पर वो अनभिज्ञता ज़ाहिर करते हुए कहते हैं, ”मैं तो अपने झोपड़े में था. क्या हुआ पता नहीं. यहाँ कौन क्या करता है, मुझ बीमार आदमी को भनक भी नहीं है.”
इसी महीने की 16 तारीख़ को कथित अतिक्रमण के ख़िलाफ़ चलाए गए अभियान के दौरान टोले के मुस्लिम परिवारों के 11 मकानों पर बुलडोज़र चला. मंडला के प्रशासन का कहना है कि जो मकान तोड़े गए हैं वो उन 11 लोगों के मकान हैं जिनको गो हत्या और गो तस्करी के मामले में अभियुक्त बनाया गया है.
पुलिस ने क्या दावा किया?
मंडला के अतिरिक्त ज़िला अधिकारी राजेंद्र कुमार सिंह का कहना है कि वैसे तो ये पूरा का पूरा टोला अवैध रूप से सरकारी ज़मीन पर ही बसा हुआ है.
वो कहते हैं, ”अतिक्रमण हटाने की प्रक्रिया चल ही रही है और बहुत पहले से ही यहाँ के लोगों को हट जाने को कहा गया था. अभी सिर्फ़ 11 लोगों के मकान तोड़े गए हैं या अतिक्रमण हटाया गया है.”
ज़िला अधिकारी सलोनी सिडाना ने बीबीसी से बात करते हुए स्पष्ट किया कि अतिक्रमण के ख़िलाफ़ कार्यवाही वर्ष 2022 से ही चलाई जा रही है.
वो कहती हैं कि भैंसवाही में मुस्लिम आबादी रहती है और ईद उल अज़हा की वजह से सिर्फ़ उन्हीं 11 लोगों के अतिक्रमण किये हुए मकान हटाये गए हैं जिनके घरों पर पुलिस ने छापेमारी की थी और उनके ख़िलाफ़ गो तस्करी और गोमांस बेचने के साक्ष्य मिले थे.
वो कहती हैं कि भैंसवाही में पुलिस और प्रशासन के लोगों का जाना बेहद जोख़िम भरा इसलिए भी है क्योंकि कई बार उन पर हमले किये गए हैं. वो सभी क़ानूनी प्रक्रियाओं का पालन करने का भी दावा करती हैं.
पुलिस का दावा है कि जून की 15 तारीख़ को स्थानीय थाने को भैंसवाही में गो मांस होने की सूचना मिली थी जिसके बाद अतिरिक्त बलों को बुलवाया गया और नैनपुर थाने के प्रभारी और अनुमंडल पुलिस अधिकारी नेहा पच्चीसिया के नेतृव में छापेमारी की गयी.
पुलिस का दावा है कि सभी 11 अभियुक्तों के घरों से गो हत्या के साक्ष्य मिले हैं.
रजत सकलेचा मंडला के पुलिस अधीक्षक हैं. उन्होंने कहा कि गो वध और गो तस्करी के ख़िलाफ़ की गयी कार्रवाई और अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई अलग-अलग चीज़ें हैं.
सकलेचा कहते हैं, ”छापेमारी के दौरान आरोपियों के घरों के अलग अलग कमरों में फ्रिज में गो मांस मिला था. इसके अलावा काटने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले हथियार भी बरामद किये गए. कमरों के अन्दर गायें भी बंधीं हुईं थीं.”
वो बताते हैं कि घरों के पीछे से भी लगभग 150 के लगभग गायें मौजूद थीं जिन्हें पुलिस ने अपनी हिफ़ाज़त में ले लिया.
अपने कार्यालय में बीबीसी से बात करते हुए उन्होंने बताया, ”हमको वहाँ अलग-अलग घरों से और घरों के बाहर से भी हड्डियों के ढेर मिले हैं. कई ऐसे घर हैं जहां से गायों के मांस के अलावा खाल और चर्बी भी बरामद हुई है. प्रथम दृष्टया जो साक्ष्य सामने आये उसके आधार पर 11 प्राथमिकियां दर्ज की गई हैं. मांस के सैम्पल को जांच के लिए हैदराबाद भी भेजा गया है.”
मंडला से पिंडराई के रास्ते में आठ किलोमीटर पहले दाहिनी तरफ़ ही भैंसवाही है. इसमें तीन टोले हैं- मस्जिद टोला, किसानी टोला और ईदगाह टोला. ईदगाह टोला में ज़्यादातर क़ुरैशी समुदाय के लोग रहते हैं जबकि किसानी टोला आदिवासी बहुल है. यहाँ की सरपंच भी आदिवासी हैं.
सरपंच के पति रमेश मरावी से हमारी मुलाक़ात पंचायत कार्यालय के बाहर ही हुई. उनका कहना था कि गो तस्करी की जानकारी पंचायत वाले पुलिस को देते रहे हैं, मगर जो कार्रवाई हुई है वो बहुत देर से हुई है लेकिन वो भी मकान तोड़े जाने के पक्ष में नहीं थे.
यहीं की रहने वाली समीना बानो का आरोप है कि जो कुछ पुलिस ने बरामद किया है वो वाहिद क़ुरैशी के घर से बरामद किया है मगर पुलिस ने दूसरों को भी इस मामले में फंसा दिया है.
उनके पड़ोस की रज़िया का कहना है कि वो अपनी बेटी की शादी की तैयारियों में लगी हुई थीं, शादी के लिए जो सामान ख़रीदा वो मकान तोड़े जाने की वजह से बर्बाद हो गया.
टोले की कुछ महिलाओं ने पुलिस पर उनके पैसे और मुर्गियों को ले जाने का आरोप लगाया जिसका पुलिस के अधिकारियों ने खंडन किया है.
अतिक्रमण हटाने को लेकर क्या बोले क़ानून के जानकार
डॉ. अशोक मर्सकोले मंडला से कांग्रेस के विधायक रह चुके हैं. वो कहते हैं कि गो तस्करी के ख़िलाफ़ कार्रवाई ज़रूरी है क्योंकि इससे सबकी आस्था जुड़ी हुई है.
उनका ये भी कहना था कि पुलिस को चाहिए कि वो इसमें संलिप्त लोगों को कड़ी से कड़ी सज़ा दिलवाने के लिए अदालत में प्रयास करे. लेकिन मर्सकोले बुलडोज़र चलाये जाने का विरोध करते हैं.
वो कहते हैं, ”अगर बुलडोज़र ही आपको रखना है तो अदालत में मामले जाने ही नहीं चाहिए. अदालतों को बंद कर देना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को आदेश पारित करना चाहिए कि अगर प्रशासन ही सारा निर्णय लेता है और शासन के पास में ही सारे निर्णय हैं तो फिर कोर्ट को बंद कर देना चाहिए…”
क़ानून के जानकार भी कहते हैं कि प्रशासन की कार्रवाई आरोपियों को पकड़ने और उन्हें सज़ा दिलवाने तक सही है. मगर, वो कहते हैं कि प्रशासन को भी क़ानून हाथों में लेने का अधिकार नहीं है.
मंडला के जाने-माने अधिवक्ता मनोज कुमार साग्वानी क़ानूनी प्रावधानों की चर्चा करते हुए कहते हैं कि ‘अगर कोई शासकीय भूमि पर है, तो मध्य प्रदेश भू-राजस्व संहिता के सेक्शन 248 के तहत तहसीलदार के स्तर के अधिकारी उनको नोटिस देते हैं और सुनवाई का अवसर भी. इन सब प्रक्रियाओं के बाद ही अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई की जाती है.’
वो कहते हैं कि अगर बिना बताये और अचानक जाकर किसी के घर या संपत्ति को तोड़ दिया जाता है तो वो क़ानून सम्मत नहीं है.
भैंसवाही में प्रशासन की कार्रवाई को सही क्यों ठहरा रहे ये लोग?
नैनपुर एक छोटा सा क़स्बा है जहां मुसलमानों की भी आबादी है. यहाँ की एक बड़ी मस्जिद है जिसके सदर शेख़ ज़फ़र मंसूरी हैं.
दोपहर की नमाज़ के बाद मस्जिद से नमाज़ी एक एक कर बाहर आ रहे हैं. इनमें कुछ से बातचीत भी हुई. मंसूरी ने बातचीत के दौरान कहा कि भैंसवाही में जिस तरह का काम हो रहा था ‘उससे पूरे मुसलमान शर्मिंदा हैं.’
अब्दुल वहाब अली के अनुसार, भैंसवाही में प्रशासन की जो कार्रवाई हुई है ”वो सही है.”
वो कहते हैं, ”इन कुछ लोगों ने पूरे समाज का नाम बदनाम कर दिया है. हिन्दुओं की आस्था को ठेस पहुँचती रही है. हम हिन्दू भाइयों के साथ खड़े हैं. प्रशासन ने जो किया वो सही किया और इसकी ज़रूरत कई सालों से थी.”
लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों के पास इस बात का कोई तर्क नहीं है कि इन 11 मकानों में से तीन ऐसे थे जो केंद्र सरकार की आवासीय योजनाओं के तहत बनाए गए थे.
इनमें से एक आसिया का मकान भी है. वो कहती हैं, ”इंदिरा आवास योजना वाले हमारे दो मकान थे और जो अभी सरकार राज्य में है उसी ने ये मकान आवंटित किये थे.”
सरकार अपनी इस कार्रवाई को जायज़ बता रही है. प्रशासनिक अधिकारी कहते हैं कि सिर्फ़ उन्हीं अभियुक्तों के मकानों को तोड़ा गया है जो अवैध तरीक़े से बने थे और जिन पर पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज की है.
अतिरिक्त ज़िला अधिकारी राजेंद्र कुमार सिंह ने बीबीसी को दिए गए साक्षात्कार में कहा कि जिन लोगों के मकान तोड़े गए हैं वो प्रक्रिया के तहत ही तोड़े गए हैं.
उनका कहना था, ”फिलहाल जो आरोपी हैं उन पर प्राथमिकी दर्ज हो चुकी है. इसलिए उन पर अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही की गयी. वहां पर आवास योजना के मकान भी थे ऐसा कोई तथ्य हमारे संज्ञान में नहीं आया है. चलिए अगर मान भी लिया जाए कि ऐसा है कि कोई शासकीय योजना का मकान है, तो वहाँ से कोई आपराधिक गतिविधि थोड़ी ना संचालित की जा सकती है.”
पुलिस के दस्तावेज़ों और स्थानीय लोग दावा कर रहे हैं कि भैंसवाही में पिछले कई दशकों से गो तस्करी के मामले सामने आते रहे.
इस जगह पर साल 2016 में छापेमारी के लिए गए एक पुलिस के जवान की हत्या भी कर दी गयी थी. ऐसे में सवाल पुलिस प्रशासन पर भी है कि अगर ऐसा कोई अवैध कारोबार चल रहा था तो इसे किसका संरक्षण हासिल था.
मंडला के पुलिस अधीक्षक का कहना है कि अब वो इस बात की भी जांच कर रहे हैं. साथ ही सवाल ये भी लगातार उठ रहा है कि क्या बिना अदालत के आदेश के बुलडोज़र का इस्तेमाल कर घर ढहा देने का प्रशासन का फ़ैसला सही है?